मथुरा-वृंदावन

मथुरा-वृंदावन

इतिहास और पौराणिक कथाओं में डूबा हुआ, भगवान विष्णु के सबसे प्रिय अवतारों में से एक, भगवान कृष्ण की जन्मस्थली के रूप में मथुरा हिंदुओं के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। ब्रज भूमि की राजधानी माना जाने वाला यह शहर भगवान कृष्ण की कथा से गहराई से जुड़ा है।

लाखों लोग भगवान कृष्ण और उनकी नटखट बाल लीलाओं का आदर करते हैं और पीढ़ियों से उनकी कहानियों को जीवित रखे हुए हैं। यमुना नदी के तट पर मथुरा का स्थान लाभदायक रहा, जिससे मौर्यकाल में इसके विकास को बढ़ावा मिला। सम्राट अशोक के शासनकाल में शहर और समृद्ध हुआ। बाद में, कुषाण साम्राज्य के तहत मथुरा व्यापार और शिक्षा के लिए एक प्रमुख केंद्र में बदल गया। कई व्यापार मार्गों पर पड़ने के कारण मथुरा एक जीवंत और समृद्ध बना, जहां विविध संस्कृतियां मिलती-जुलती थीं। यहीं पर बौद्ध मूर्तिकला कला विकसित हुई और अपने पीछे उत्कृष्ट मूर्तियों की विरासत छोड़ गई।

मथुरा से सिर्फ 15 किलोमीटर की दूरी पर कृष्ण का आध्यात्मिक घर वृन्दावन है। यह पवित्र शहर न केवल वह स्थान है जहां कृष्ण की मधुर बांसुरी की धुन सुनी जाती थी, बल्कि यह उनके दिव्य कृत्यों का साक्षी भी रहा। इसका बखान, रसखान और मीराबाई जैसे प्रसिद्ध कवियों की कविताओं से और भी बढ़ जाता है, जिन्होंने अपने छंदों से वृन्दावन को अमर बना दिया।

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